बरबटी की खेती longe beens

परिचय

बरबटी एक सब्जी वर्गी फसल के रूप में उगाई जाने वाली यह फसल है बरबटी को गर्मी और बरसात के मौसम में खेती किया जाता है इसका उपयोग दाल और हरी सब्जियों के रूप में किया जाता है

इसको चाऊमीन में भी उपयोग किया जाता है इसमें प्रोटीन की मात्रा अच्छा होता तथा बरबटी की खेती करने से भूमि की उर्वरक शक्ति में वृद्धि देखने को मिलती है

बरबटी की खेती करने के लिए भूमि का चुनाव

बरबटी के लिए अच्छे जल निकास वाली भूमि का चयन करें इसकी खेती सभी प्रकार की भूमि पर किया जा सकता है इसकी ज्यादा उपज लेने के लिए काली दोमट मिट्रटी तथा बालूई मिट्टी का सर्वोत्तम माना जाता है

धनिया-की-खेती/

बरबटी की खेती के लिए जमीन तैयार करना

बरबटी की खेती करने से पहले खेत को साफ कर तथा उसमें की पुरानी फसलों को जलाकर खत्म कर दे और कल्टीवेटर से 3 बार जुटाई करें फिर रोटावेटर से खेत की मिट्टी को भुर भुरी बना ले फिर उसके बाद खेत में पाटा [ हेगा] चला कर खेत को समतल बनाएं

बरबटी की खेती में मल्चिंग बिछाना

मल्चिंग बिछाना से खेत में घास नहीं आता और कम पानी में भी अच्छी खेती की जा सकती है क्योंकि मल्चिंग से पानी का वासीकरण नहीं होता

बरबटी के का कुछ निम्न प्रजातियां हैं

अंकुर केतकी

यह किस्म मुख्ता गरर्मी में और बरसात के लिए उपयुक्त होती है इसका फल 41से 15 सेंटीमीटर लंबा होता है जो बीज बुआई से 40 से 45 दिन के दिनों मे पहले तोढ़ाई की जाती है

इसका बीज लाल रंग क्या होता है जिसका दाल के रूप में उपयोग किया जाता है तथा इसका पेड़ झाड़ी नुमा होता है तथा लगातार नई-नई शाखाएं आती हैं जिसे तोड़कर पशुओं को चार के रूप में उपयोग किया जाता है इससे लगभग 120 से 110 कुंतल हरी फलिया प्राप्त होती हैं

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यह मुख्यतः बरसात के मौसम में लगाया जाता है इस किस्रम की फली 15 से 20 सेंटीमीटर लंबी हरी होती है इसके प्रथम तोडाई बीज बोने से 50 से 60 दिन में की जाती है

इसकी औसत पैदावार फिर 140- 150 कुंतल प्रति एकड़ होती है तथा इसका बीज लाल और सफेद रंग का होता है इसका पेड़ झाणी नुमा होता है

पूसा फाल्गुनी

यह किस्रम मुक्तत गर्मी और बरसात के लिए उपयुक्त होती है उसकी फली 10 से 15 सेंटीमीटर लंबी हरि रंग की होती है जो की बुवाई से 55 से 60 दिनों के बाद प्राप्त होता है

इसका इसके बीज सफेद तथा हरे रंग के होते हैं जिसे दाल के रूप में प्रयोग किया जाता है

काशी कंचन

या अगेती किस्म है जो भारत के सभी राज्यों और सभी मौसम में उगाई जाती है इसके 40 से 45 सेंटीमीटर लंबा झाणीदार होते हैं बीज बुवाई से 40 से 45 दिन में फूल आ जाता है

और 50 से 60 दिन में फलिया भी आ जाती हैं इसकी फलियां हरे रंग के मुलायम दर होते हैं

अंकुर गोमती

यह किस्रम में सिर्फ गर्मी के मौसम में आगेती की खेती के लिए जानी जाती है यहां हल्का सफेद रंग का होता है और पेड़ झाड़ीदार होता है फल का साइज 10 से 15 सेंटीमीटर लंबा होता है यह बीज बोने से 40 से 45 दिन में फल की तौड़ाई होने लगती है

बीज बोने से पहले उपचार

बरबटी की खेती के लिए प्रति हेक्टर बीज गर्मी की फसल के लिए की 20 से 30 किलो तथा वहीं बरसात के मौसम के लिए 10 से 15 किलो की आवश्यकता होती है

बीज को 4 से 5 किलोग्राम थीरम नामक दवा से या साफ( मैकोजेब कार्बन ) से उपचारित करें फिर उसके बाद बीज को बोई को जिसमें उकठा रोग,जङ गलन, विशाणु फंगस के प्रति सहनशील हो

बरबटी होने का सही समय

बरबटी की खेती सही समय पर किया जाना चाहिए जिससे सही-सही समय इस प्रकार है गर्मी की अगेती खेतीके लिए फरवरी माह से बुवाई शुरू कर दे तथा प्रक्षेती के लिए मार्च अप्रैल में बुवाई करें बरसात के मौसम में अगेती के लिए 1 जून से बुवाई शुरू करते तथा पक्षेती की खेती के लिए सितंबर माह में बुवाई करें

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बरबटी बोने का सही विधि

बरसात के मौसम में बरबटी को 40 से 45 सेंटीमीटर कतार से कतार तथा 10 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी रखनी चाहिए बीज को हाथ से कतार में बोना चाहिए

गर्मी के मौसम में बरबटी की फसल को सीड ड्रिल से या हाथ से बोया जाता है या फिर खेत में भी बिखेर दिया जाता है गर्मी के फसल में 20 सेंटीमीटर से 30 सेंटीमीटर कतार से कतार तथा पौधा से पौधे की दूरी 5 सेंटीमीटर होनी चाहिए

बरबटी के खेत में खाद और उरवर्रक

बरबटी की खेती के लिए 20 से 40 टन सडी गली गोबर के खाद या वर्रमा कंपोस्ट का जुताई के बाद डालकर फिर रोटावेटर से जुटाई करें जिससे खाद मिट्टी में मिल जाए इससे यूरिया बहुत कम मात्रा में आवशकता होती है याह पौधा यूरिया की मात्रा प्रकृति से प्राप्त कर लेता है

इस फसल में फास्फोरस का महत्व ज्यादा होता है क्योंकि यहां शाखाएं अधिक मात्रा में देता है तथा जड़ों में बनने वाली गाठो की संख्या को बढ़ाता है इसमें 50 से 80 किलो सुपर और 50 से 70 किलो पोटाश प्रति हेक्टर देना चाहिए और बरबटी की फसल में जिंक को 10 से 15 दिन में देना चाहिए या

फिर जिंक का छिड़काव कर सकते हैं अतः बरबटी में जिंक की कमी होने पर 10 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर देना चाहिए

बरबटी के वृद्धि नियंत्रक उपचार

बरबटी का पौधा झाणीदार होने के कारण वह लगातार नई-नई शाखाएं निकलती रहती हैं जिसेके रोकथाम के लिए (लियोसीन) या मेपिकर्वट क्लोराइड का छिड़काव 4ml पर 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें यह छिड़काव फुल आने से पहले करें जिससे 30 से 35% फल में वृद्धि होती है अगर आप ज्यादा छिड़काव करते हैं पौधे पर विपरीत असर दिखाई पड़ेगा

बरबटी की सिंचाई

बरबटी की सिंचाई हल्की करनी चाहिए क्योंकि बरबटी उथली जड़ों वाली फसल है गर्मी के मौसम में हर तीसरे और चौथे दिन सिंचाई करना चाहिए

वर्षा ऋतु में मानसून के अनुसार सिंचाई करें सिंचाई के साथ-साथ जल निकास का भी उचित प्रबंध करें क्योंकि जल जमाव होने पर फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है

खेत की साफ सफाई

बरबटी में निराई गुड़ाई करना आवश्यक होता है बुवाई से 20 से 30 दिन के बाद खेत में निराई गुङाई कर खेत को साफ करें तथा जब खेत में खास अथवा अन्य चीज ऊगे तो खेत के साफ सफाई करें

रोग और रोकथाम

बरबटी के रोग, किट और रोकथाम

हरि मक्खी

यहां किट हरा रंग का होता है इसके वयस्रक का बच्चे पत्तियों का रस चूसकर पौधे को नुकसान पहुंचाते हैं जिससे अगर आप पौधे पर किट का नियंत्रण करना चाहते हैं तो कीट के रोकथाम के लिए एमिङाक्लोरोपिङ 17.8 sl प्रतिशत का 2 ML/Liter पर लीटर दवा का छिड़काव कर सत्ताह मे2बार छिडकाव करे जिससे हरि मक्रखी खतम हो जाय

फल छेदक

बरबटी में फल छेदक एक आम बीमारी पाई जाती है जो किट फल को छेदकर खा जाते हैं इसके रोकथाम के लिए फोसलेन का 2 ML ईमेल पर लीटर पानी में खोलकर छिड़काव करें तथा एक सप्ताह में दो बार अवश्य छिड़काव करें

बरबटी के रोग

बरबटी के कुछ फंगस और विषाणु रोग निम्न है

मोजक रोग

यह रोग बरबटी के बीज व किट से होता है इस रोग में पत्तियों पर पीलापन आ जाता है जिससे पत्तियां चितकबरी हो जाते हैं और पौधों की बढवार रुक जाते हैं इसके रोकथाम के लिए रोग निरोधक बीच की बुवाई करें

फफूंद चूणा

यह रोग बरबटी के फंगस के कारण होता है जिससे यह आप फंगस होता है होते ही बरबटी की जड़ सड़ने लगते हैं और शाखाएं सूख जाते हैं इसके रोकथाम के लिए साफ या सल्फर जो खून से 80WG में आता है उसका हर 15 दिन में छिड़काव करें

बरबटी की तुड़ाई

बरबटी की पहली तुङाई 55 से 60 दिन में हो जाती है और यह शिघ विकसित होती है जिसके कारण दो से तीन दिन में फल तैयार हो जाता है और फल को मंडी के अनुसार तुङाई करना चाहिए ज्यादा दिन तक फल को छोड़ने पर फाली कड़ी हो जाते हैं

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बरबटी की उपज

अधिकांशथा कुछ किस्म बहुत ज्यादा दिन तक पैदावार नहीं दे पाते और कुछ किस में बहुत लंबा समय तक पैदावार देते हैं तो कल लगभग उपज 20 से 40 कुंतल दान या बीज प्राप्त होता है और 50 से 60 कुंतल भूसा प्रति हेक्टर प्राप्त होता है

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आता हम बरबटी की खेती समय और मानसून के अनुसार करना चाहिए जिसमें उपज और पैदावार दोनों का ध्यान रखा जाए बरबटी के कुछ रोग का उपयोग ध्यान देना चाहिए बरबटी का खेती सही समय पर बोना समय पर खाद पानी देना चाहिए

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